Ramkatha Event – Day 5

श्रीराम कथा के पांचवें दिन हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने हिस्सा लिया। राज्यपाल ने अपने संबोधन में बापू का हरियाणा में आने के लिए अभिनंदन किया। उन्होंने कहा, जिस तरह बापू की कथा में हजारों लोग एक साथ होकर बैठे हैं, मैं कामना करता हूं पूरा हरियाणा भी इसी तरह हो जाए। उन्होंने कहा बापू कथा के माध्यम से भारत नहीं पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति का प्रचार कर रहे हैं। मोरारी बापू को देखकर स्वमी रामतीर्थ याद आते हैं। एक बार उनके इंग्लैंड में वहां की वेशभूषा को पहनने का आग्रह किया गया। उन्होंने सब कुछ पहना लेकिन हैट नहीं पहना क्योंकि सर पर भारत का गौरव और पहचान है। राज्यपाल ने कहा, तुलसीदास जी ने तो रामचरितमानस लिखी थी, बापू उसे सबके दिल में बसा रहे हैं। मानव रचना विश्वविद्यालय सिर्फ नाम की मानव रचना नहीं बल्कि वास्तविकता में मानव की रचना कर रहा है। लोकमान्य तिलक, स्वामी विवेकानंद को याद करो, जिनको मुख पर वंदे मातरम और हाथ में गीता होती थी। बापू राज्यपाल के संबोधन के बाद कहा- राजपीठ का व्यासपीछ के तरफ इतना आदर देखकर व्यासपीठ बहुत आभार व्यक्त करती है।

बापू ने पनघटवृत्ति के बारे में बात की। कहा सत्युग का सार पनघट वो है, जहां पानी पूरी मात्रा में है और वो प्यासों की प्यास बुझाता है। सत्युग में सबको प्यास थी और प्यास को बुझाने की व्यवस्था थी।

तेज दो प्रकार के होते हैं—प्रभाव का तेज., स्वभाव का तेज। गेरूआ वस्त्र आग में जीने का प्रतीक है और संन्यास का संकेत हैं। श्वेत वस्त्र संन्यास और त्याग का संकेत हैं।

‘लकड़ी जली तो ऐसे जली, पहले कोयला फिर राख

मीरा जली तो ऐसे जली, न कोयला न राख’

जो कथा में आते हैं वह ज्ञान के प्यासे हैं, भक्ति के प्यासे हैं, धर्म के प्यासे हैं,, जिनको प्यास ही नहीं वो मोल-भाव, तर्क-वितर्क करते हैं। तुलसी का पनघट यहां हमारी प्यास बुझाने को मौजूद है।

बापू ने इस दौरान एक भक्त दीप्ति की कविता पढ़ी

मुझे उस गुनाह की सज़ा मिली, जो मैंने किया ही नहीं

ये सज़ा नहीं साजिश थी, मुझे तोड़ने की

मैं नहीं टूटी, फिर मुझे उससे बड़ी सज़ा मिली

वो गुनाह क्या थी, मैं टूटी नहीं

कथा के पांचवें दिन बापू ने श्री कृष्ण की मृत्यु का अनोखा विवरण दिया। इस दौरान बापू भी भावुक हो गए और उनकी आंखे भी पानी से भर गई। बापू ने कहा- जिसमें अत्यंत क्रोध की भावना है उसमें अत्यंत करुणा की संभावना है। बापू ने मन की महाभारत के वर्णन में बताया, श्री कृष्ण से सरल चित्त आज तक विश्व में किसी का नहीं हुआ। कभी किसी संत को देखो तो ये मान लेना थोड़ी देर के लिए श्री कृष्ण को देख लिया। कृष्ण के महानिर्वाण का विवरण देते हुए बापू ने विस्तारपूर्वक एक-एक घटना का उल्लेख बेहद मार्मिकता से किया।

बापू ने बाताया- तीन प्रकार के प्रभु का अवतरण होता है—पहला अवतार के रूप में, दूसरा बुद्ध पुरूष के रूप में, तीसरा ग्रंथ के रूप में।

कथा के आखिर में बापू ने एक बार फिर मानव रचना शैक्षणिक संस्थान का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा- बहुत अच्छा लगा आपने हर जगह आग्रहकर्ता शब्द लिखा है। तारीफ करते हुए बापू ने कहा, शैक्षणिक संस्थान है न, शब्दों का चयन अच्छा है। राज्यपाल ने भी आपके संस्थान की प्रशंसा की है, ऐसे में आपकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है।